मैं भी जीने की कला भूल गया
वो अगर करना गिला भूल गया
मैं भी जीने की कला भूल गया
जब से आया हूं नगर में रहने
गांव की आब-ओ-हवा भूल गया
रौज़न-ओ-दर तो हैं पर कैसे खुलें
जब मैं ख़ुद घर का पता भूल गया
वर्जिशें होती हैं अब जिम में ही
हर कोई बाद-ए-सबा भूल गया
ज़ीस्त के शोर में ऐसा उलझा
दिल के नग़मों की सदा भूल गया
काग़ज़ी फ़न में हुआ क्या माहिर
दिल लुभाने की अदा भूल गया
दोष फुर्क़त का मैं अब दूं किसको
हाय जब मैं ही वफ़ा भूल गया
भूल बैठा हो जो रिश्ते 'आकिफ़'
क्या बताएं कि वो क्या भूल गया
hard bro
ReplyDeleteYaha sabhi log ek jese hai
ReplyDeletelovely bro
ReplyDelete